आवाज़ जनादेश
म्यूटेशन के लिए धक्के खा रही अम्बाला छावनी की जनता।
लीगल एडवाइजर किस नियम के तहत नियुक्त, इससे जनता परेशान व भ्र्ष्टाचार को बढ़ावा।
अम्बाला छावनी नगरपरिषद में म्युटेशन फीस की धांधली के साथ साथ जनता पर नाजायज शर्तो व कागजो की मांग करने का आरोप लगाते हुए युवा इनैलो नेता एडवोकेट दमनप्रीत सिंह ने कहाकि नगरपरिषद अधिकारी मनमर्जी की म्युटेशन फीस जनता से वसूल रहे हैं जबकि इस सम्बन्धित नियम या कानून की प्रति मांगने पर सचिव नगरपरिषद के पास संतुष्टि लायक कोई जवाब नही है। उन्होंने कहाकि हल्के की जनता को अधिकारियों के हाथों लुटने नही दिया जाएगा। सचिव नगरपरिषद अपनी मनमर्जी से किसी फ़ाइल पर 10000, किसी पर 5000 व किसी फ़ाइल पर 2000 रुपये प्रति वर्ष के हिसाब से कम्पोजीशन फीस लगा रहे थे जो की सरासर गलत था, इस सम्बन्धमे जनसूचना अधिकार अधिनियम के तहत जब प्राप्त सूचना से पता लगा कि नगरनिगम में 500 रुपये व 1000 रुपये म्युटेशन फीस ली जाती है तो नगरपरिषद के सचिव ने 1000 रुपये से 3000 रुपये लेने धुर कर दिए। भारत मे लोकतंत्र है राजतंत्र नही और लोकतंत्र में सविंधान सर्वोच्च होता है। सविंधान में कानून समक्ष समता को सर्वोपरि मानते हुए किसी भी अधिकारी को मनमर्जी का जुर्माना वसूलने के अधिकार नही दिया गया। पहले भी अम्बाला छावनी में मंडे मार्किट के रेहड़ी फड़ी वालो से नगरपरिषद के अधिकारियों ने 200 रुपए व 300 रुपये प्रतिदिन के हिसाब से नाजायज वसुली की थी जो कि सूचना अधिकार अधिनियम के तहत सूचना मांगने के पश्चात बन्द की गई। म्युटेशन के नाम पर यह वसूली भी नियमानुसार नही लगती क्योकि यदि कोई नियम/कानून है तो सचिव महोदय को उसकी प्रतिलिपि देने में एतराज क्यों है। वास्तव में नगरपालिका अधिनियम 1973 की धारा 87(5) के अनुसार सम्पत्ति में किसी भी परिवर्तन की सूचना पुराने मालिक या नए मालिक द्वारा नोटिस के द्वारा 3 माह में के अंदर देनी है यदि 3 माह से पश्चात नोटिस दिया जाता है तो न्यूनतम 25 रुपये और अधिकतम 200 रुपये जुर्माना वसूला जा सकता है लेकिन यहां तो अंधेर नगरी है, अधिकारी मनमर्जी का जुर्माना वसूला रहे हैं जैसे कि व्यपारी ग्राहक की शक्ल व क्षमता देखकर रेट लगाता है। यह भी महत्वपूर्ण है कि कानून में किसी लीगल एडवाइजर के पास फ़ाइल भेजने का कोई प्रवधान नही है लेकिन नगरपरिषद में फ़ाइले लीगल एडवाइजर के पास कानूनी राय के लिए भेजी जाती है जिससे कार्य मे देरी तो होती ही है इससे भ्र्ष्टाचार भी पनपता है। कानून अनुसार म्युटेशन के लिए धारा 87(1) के अनुसार नगरपरिषद को सिर्फ सूचना के साथ ट्रांसफर का प्रमाण देना होता है क्योंकि म्युटेशन सिर्फ टैक्स उद्देश्य के लिए होती है, यह कोई मलकियत का प्रमाण नही है लेकि अम्बाला छावनी में म्युटेशन के लिए अजीब अजीब दस्तावेजो की मांग की जाती है। एक्साइज छेत्र के बाहर के छेत्र में सम्पत्ति मालिक की मृत्यु उपरांत राजस्व रिकॉर्ड में सम्बंधित छेत्र का पटवारी विरासत का इंतकाल दर्ज व तहसीलदार इंतकाल मंजूर करता है लेकिन कितनी अजीब बात है कि सचिव नगरपरिषद ऐसी अवस्था मे दो अखबारों में पब्लिश करवाने को कहते हैं। इन्हें कौन समझाए की विरासत का इंतकाल राजस्व अधिकारियों का कार्य है जो विशेष तस्दीक व इन्क्वारी के पश्चात किया जाता है जबकि नगरपरिषद का कार्य सिर्फ टैक्स इकट्ठा करने के लिए म्युटेशन करना होता है। जनता की इस परेशानी को कौन समझे। जनता त्रस्त, नेता व्यस्त और अधिकारी मस्त। उन्होंने उच्च अधिकारियों से मांग की कि मामले पर संज्ञान लेकर उचित कार्यवाही की जाए और पूर्व की नाजायज वसूली जनता को वापस करवाई जाए। मेरी अम्बाला छावनी की जनता से विनम्र अपील है की म्युटेशन फीस जमा करवाने से पूर्व अधिकारी से सम्बन्धित नियम की कॉपी मांगे और कॉपी न दिए जाने पर फीस जमा न करवाए और एकजुटता का प्रमाण देकर नगरपरिषद अधिकारियों की मनमर्जी पर लगाम कसने के कार्य करें।