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*भाजपा को सुखराम परिवार का आश्रय*

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भाजपा ने आश्रय को अपने आश्रय में लेने को बिछाई सियासी विसात

*पंडित सुखराम के परिवार की सियासी पेंठ का प्रदेश राजनीतिक में अहम किरदार , मोदी रैली में आश्रय को भाजपा में शामिली की चर्चा थी*

आवाज जनादेश चुनाव डेस्क

हिमाचल गठन के बाद प्रदेश के विकास और राजनीति में प्रदेश
निर्माता डॉ यशवंत सिंह परमार के बाद किसी नेता का योगदान को याद किया जाता है तो वह है स्वर्गीय पंडित सुखराम हालांकि छः बार प्रदेश के मुख्यमंत्री रह चुके स्वर्गीय राजा वीरभद्र सिंह का योगदान भी कम नही रहा है।परंतु पंडित सुखराम को आज भी प्रदेश में संचार क्रांति के मसीहा और राजनीति के चाणक्य के रूप में नाम से जाना जाता है ।
उनकी राजनीतिक छाप जनमानस में ऐसी थी जिसके कारण वह आवाम के नेता कहलाहते थे। वो संसार में नहीं है पर उनका प्रदेश में खासकर मंडी और समीपवर्ती जिलों में बहुत बड़ा जनाधार है लोग आज भी उनके परिवार में राजनीतिक आस्था रखते है ।
प्रदेश के पिछले कई चुनावों में इस परिवार का राजनीति पर जो असर देखा गया है वह विरासत की कड़ी जोड़ता है।
*क्यों खास थे सुखराम*
पंडित सुखराम की लोकप्रियता का अंदाजा 18 बार चुनाव लडने का रिकार्ड भी उनके नाम से लगाया जा सकता है जिसमें मंडी सदर से 13 बार विधायक बनने और प्रदेश में कैबिनेट मंत्री ,केंद्रीय मंत्री से लेकर राजनीतिक बड़े पदों पर रहने के साथ कांग्रेस में अनबन के चलते हिमाचल विकास कांग्रेस बना कर पहली बार गैर भाजपा और गैर कांग्रेस के पांच विधायक को जीता कर प्रदेश सत्ता की चाबी अपने हाथ लेकर साल 1998 में भाजपा की मुख्यमंत्री प्रेम कुमार धूमल के नेतृत्व वाली सरकार बना कर पहली बार प्रदेश में गैर कांग्रेस सरकार के पांच साल पूरे करने का भी इतिहास अपने नाम कर राजनीतिक सोच व तुजर्वा का लोहा सभी दलों से मनवाया ।
उनके इस राजनीतिक सफर में प्रदेश में भाजपा कांग्रेस में अच्छी पेंठ का अंदाजा लगाना कठिन नहीं ।
सुखराम परिवार की राजनीतिक विरासत की दूसरी पुश्त में बेटा अनिल शर्मा भी उनके नक्शे कदम पर चले हैं। वर्ष 2017 के चुनावों से पहले सुखराम का पूरा परिवार भाजपा में चला गया था और इस साल अनिल शर्मा मंडी सदर को जीत विधायक व मंत्री बने । साल 2019 में लोकसभा चुनाव में इस परिवार से आस्था रखने वाले लोग उनकी तीसरी पीढ़ी के उतराधिकारी आश्रय शर्मा को मंडी लोकसभा सीट से सांसद बनाना चाहते थे ,भाजपा से आश्रय को टिकट भी मांगा पर पर पार्टी परिस्थितियों से उन्हें टिकट नहीं मिला । पंडित सुखराम ने आश्रय की कांग्रेस में वापसी करवाकर मंडी से चुनाव में उतारा । परिवार दो राजनीतिक धाराओं में बहने के कारण आश्रय के पिता भाजपा मंत्री को मंत्री पद से भी इस्तीफा देना पड़ा । प्रदेश भाजपा और इसका संगठन जानता है कि पिछले चुनावों में मंडी में दस में से नौ सीटों को जीतने में इस परिवार का हाथ रहा है और वह भाजपा सरकार बनाने की बुनियाद बना ।
अब प्रदेश में सत्ता वापसी की राह देखने वाली भाजपा इस परिवार की अहमियत देखते हुए इस पर राजनीतिक डोरे डाल रही है।
पार्टी को पूरी खबर है कि आश्रय ने मंडी द्रंग से कांग्रेस टिकट मांगा है । वहां पार्टी में कद्वार नेता व प्रदेश के पूर्व मंत्री एवं पार्टी के पूर्व प्रदेश अध्यक्ष कौल सिंह ठाकुर पहले से ही टिकट के दावेदार है और प्रदेश में कांग्रेस से मुख्यमंत्री की रेस में दौड़ने वाले नेताओं की पंक्ति में भी शुमार है। ऐसे में उन्हें आश्रय को द्रंग से टिकट मिलना मुश्किल लगता है । इस बीच शनिवार को प्रधानमंत्री नरेन्द्र मोदी की मंडी रैली में राजनीतिक गलियारों से खुलकर चर्चाएं थी कि आश्रय का नाम प्रदेश में कांग्रेस से भाजपा में सम्मिलित होने वाले नेताओं में शीर्ष स्थान पर है । जानकारों की मानें तो आश्चर्य पहले ही कांग्रेस की कार्य पद्धति से खफा चल रहे हैं हालांकि मंडी रैली में प्रधानमंत्री का आना खराब मौसम के कारण हो नहीं पाया पर चर्चा आम रही की जल्द ही आश्रय जल्दी भाजपा शामिल होंगे जिसका का नया कार्यक्रम तय होगा,बहरहाल इसके बारे आने वाला कल ही बता सकता है,की इससे प्रदेश की राजनीति में क्या असर होगा पर एक बात तय है कि प्रदेश की राजनीति में गहरा प्रभाव रखने वाले पंडित सुखराम के परिवार का फैसला प्रदेश की राजनीति पर गहरी छाप छोड़ सकता है ।

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